कुछ तो लोग कहेंगे
दर्शिल कोचर 9 D
बचपन से हम एक कहानी सुनते आ रहे हैं कि पिता और पुत्र एक दिन एक घोड़ा लेकर कहीं जा रहे थे। रास्ते में किसी ने देखा और कह दिया- 'कितने बेवकूफ हैं, घोड़ा साथ होते हुए भी पैदल चले जा रहे हैं।' यह सुनकर वे दोनों घोड़े पर बैठकर चलने लगे। अभी थोड़ा आगे चले थे कि कुछ लोगों ने कहा- 'कितने निर्दयी हैं जो दोनों घोड़े पर चढ़े बैठे हैं। अरे अगर पुत्र पैदल चलने लगे और पिता बैठा रहे तो क्या हर्ज है!' यह सुनकर पुत्र उतर गया और पिता घोड़े पर बैठा रहा। थोड़ी दूर और चले तो कुछ लोगों ने फिर ताना कस दिया- 'कितना निर्दयी पिता है, खुद तो बैठा है और पुत्र को पैदल चला रहा है।' सुनकर पिता घोड़े से उतर गया और पुत्र को घोड़े पर बैठा दिया। फिर आगे चले तो कुछ लोग पुत्र को कोसने लगे।
इस कहानी का अर्थ यह है कि दोनों ने हर तरह से सभी लोगों को खुश करना चाहा, फिर भी वे सबको खुश तो न कर सके। कहने का अर्थ यह है कि आप जो करो यानी जो हो रहा है, सामने वाला उसमें कमी ही ढूँढ़ता रहता है। हम अपनी जिंदगी में हर छोटे से छोटे काम में भी वही करते हैं जिससे हमें दूसरों की तारीफ या शाबाशी मिले। अपनी पसंद और नापसंद तो हम बाद में ही देखा करते हैं। ऐसे में अपनी वास्तविकता हम भूल ही जाते हैं।
हर काम सिर्फ इस बात पर निर्भर करता है कि ऐसा करेंगे तो लोग क्या कहेंगे। लोगों की हमें इतनी परवाह रहती है कि हम खुद को दुःख में रखकर भी वही करते हैं जो दूसरे लोगों को खुश रख सके। सच यह है कि हम चाहे जो भी काम करें, वो कैसा भी क्यों न हो ; अपनी खुशी से करें। तभी मन को खुशी मिलेगी, वर्ना दुख ही मिलेगा। 'लोग क्या कहेंगे' के डर से जो ऊपर उठ जाता है, उसके पास अगर कुछ नहीं भी है, तो भी बहुत कुछ है।
हर व्यक्ति का नजरिया अलग-अलग होता है। आप किसी रंग का कपड़ा पहनकर निकलते हैं, तो एक उसकी तारीफ करता है तो दूसरा बुराई। ऐसे तो कभी खुशी नहीं मिल सकती। कहने वालों की कमी नहीं है संसार में। हमें अपना हर काम अपनी संतुष्टि के लिए ही करना चाहिए। करें वही जो स्वयं को उचित लगे, जो अपने व परिवार के हित में हो। और किसी महान इंसान ने तो कहा ही है कि "कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना, छोड़ो ये बेकार की बातें इनमें कहीं बीत ना जाए रहना। छोड़ कर फिक्र ज़माने की, तुम अपने दिल की सुनते रहना।’’
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